۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
कल्बे सिब्ते नूरी

हौज़ा / मुनाज़ेरा तो आयतुल्लाह शरफुद्दीन और अल अज़हर यूनिवर्सिटी के चांसलर के बीच हुआ था , इल्मी अंदाज़ से तहज़ीब और अदब के साथ , मौलाना फ़िरोज़ साहब को ये शोशा छेड़ने की क्या ज़रूरत थी बेकार का फ़ितना खड़ा हो गया।

हौजा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, नीम मुल्ला खतरा ए ईमान ये मसल मशहूर है । मुनाज़ेरा वहां होता है जहां दोनों तरफ आलिम होते हैं । किताबें रखी जाती हैं । मुनाज़ेरा की कुछ शर्तें होती हैं उनकी पाबंदी ज़रूरी होती है । यहां जिसको मुनाज़ेरे की दावत आसिफी मस्जिद के मिंबर से दी गयी उसकी इल्मी लियाक़त क्या है ?

मौलाना फ़िरोज़ साहब सामने बैठे होंगे वो दो मिनट में चीख़ने चिल्लाने लगेगा , इनका तो बी पी बढ़ जायेगा और क्या शानदार मुनाज़ेरा होगा । क़ौम की और भद होगी और दुनिया मज़ाक़ उड़ाएगी ।
मुनाज़ेरा तो आयतुल्लाह शरफुद्दीन और अल अज़हर यूनिवर्सिटी के चांसलर के बीच हुआ था , इल्मी अंदाज़ से तहज़ीब और अदब के साथ , मौलाना फ़िरोज़ साहब को ये शोशा छेड़ने की क्या ज़रूरत थी बेकार का फ़ितना खड़ा हो गया। इसी लिये कहा गया है कि पहले अच्छी तरह सोच समझ लो फ़िर ज़बान से बात निकालो । जल्दबाज़ी में ज़बान खोल देना फ़ितने पैदा करता है । जिसका जो दिल चाह रहा है बोल रहा है , वो भी क़ुरआन जैसे हस्सास मौज़ू पर। मुनाज़ेरा ही हल होता तो सलमान रुश्दी और तस्लीमा नसरीन को भी मुनाज़ेरे की दावत दी होती हमारे ओलमा ने लेकिन हमारे ओलमा जानते हैं कि मुरतद हो चुके और बातिल का आलये कार बन चुके इंसान से मुनाज़ेरा नहीं किया जाता । खुदा के लिये क़ौम का और तमाशा बनाना बंद करिये और रमज़ानुल मुबारक के लिये अपने को आमादा करिये —–

डाक्टर कल्बे सिब्तेन नूरी

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